जगदीप धनखड़ के बाद सी.पी. राधाकृष्णन: उपराष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने में BJP का ‘यू-टर्न’ कैसे दिखा?

संयमित छवि, दक्षिण भारत में स्वीकार्यता और वैचारिक पृष्ठभूमिराधाकृष्णन की उम्मीदवारी क्या संदेश देती है?

भारतीय राजनीति में उपराष्ट्रपति पद हमेशा से “संतुलन और संवाद” का प्रतीक माना जाता है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद BJP ने जिस अंदाज़ में सी.पी. राधाकृष्णन को आगे बढ़ाया है, उसे जानकार एक रणनीतिक बदलाव मान रहे हैं—जहाँ टकराव की जगह समावेशन और संतुलन को प्राथमिकता दी गई दिखती है।

  • BJP ने उपराष्ट्रपति पद के लिए सी.पी. राधाकृष्णन को चुना—संयमी और संगठित-छवि वाले नेता के रूप में पेश।
  • चयन को दक्षिण भारत और OBC सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस की रणनीति माना जा रहा है।
  • राधाकृष्णन की RSS/जनसंघ से शुरुआती वैचारिक निकटता—एक बड़ा सिग्नल।
  • संदेश स्पष्ट: राज्यसभा को अब टकराव नहीं, संतुलन चाहिए।

क्यों कहा जा रहा है ‘यू-टर्न’?

धनखड़ की छवि तेज़-तर्रार और मुखर रही—कानूनी तर्क, तीखे हस्तक्षेप और कई बार टकराव के लिए उन्हें जाना गया। ठीक इसके उलट, राधाकृष्णन का नाम एक ऐसे नेता की तरफ इशारा करता है, जो लो-प्रोफाइल, संवादप्रिय और प्रक्रिया-प्रधान कार्यशैली के लिए पहचाने जाते हैं। यही बदलाव “यू-टर्न” जैसा प्रतीत होता है।

दक्षिण और सोशल इंजीनियरिंग

  • दक्षिण भारत फैक्टर: तमिलनाडु सहित दक्षिणी राज्यों में BJP को दीर्घकालिक पैठ चाहिए। राधाकृष्णन का चेहरा वहाँ स्वीकार्य और संवादक्षम माना जाता है।
  • OBC फोकस: संगठनात्मक आधार को व्यापक करने के लिए OBC सोशल इंजीनियरिंग पर पार्टी का लगातार ज़ोर—यह चयन उसी सिलसिले की कड़ी दिखता है।

क्या बदल सकता है संसद में?

  • राधाकृष्णन: संयमित, सहमति-निर्माण पर जोर, कम-विवादी बयानबाज़ी।
  • धनखड़: दृढ़ कानूनी शैली, तीखे इंटरवेंशन, विपक्ष के साथ बार-बार घर्षण के आरोप।
    नई उम्मीदवारी का संदेश—नियम-केंद्रित संचालन, कम शोर-शराबा, और अधिक समन्वय

राजनीतिक संकेत: वैचारिक सुसंगति बनाम व्यावहारिक चयन

धनखड़ को कई विश्लेषक “व्यावहारिक राजनीतिक चयन” मानते रहे—जिनका संघ से गहरा वैचारिक रिश्ता नहीं था। वहीं राधाकृष्णन किशोरावस्था से संघ/जनसंघ से जुड़े रहे—यानी संगठनात्मक-वैचारिक निरंतरता का चेहरा। इससे पार्टी अपने कोर सपोर्ट-बेस को आश्वस्त भी करती दिखती है।

  • धनखड़ के कार्यकाल में विपक्ष के साथ कई मुद्दों पर टकराव सुर्खियों में रहा।
  • इस्तीफ़े के बाद नया चुनावी/संसदीय मौसम—संतुलन के नए सेंटर की तलाश।
  • राधाकृष्णन की गवर्नेंस-ओरिएंटेड छवि और दक्षिणी कनेक्ट—डबल बूस्ट

“राज्यसभा को अब संतुलन चाहिए”

उपराष्ट्रपति (राज्यसभा के सभापति) की सबसे बड़ी कसौटी है सर्वसम्मति बनाने की क्षमता। राधाकृष्णन का लो-की, संस्थागत और प्रक्रियात्मक रवैया—कड़े संसदीय टकराव के दौर में डैमेज-रिडक्शन और कंसेंसस-बिल्डिंग का रास्ता खोल सकता है।

Q1. क्या यह चयन दक्षिण भारत में BJP के विस्तार का संकेत है?
हाँ, यह वैचारिक + भौगोलिक—दोनों मोर्चों पर संदेश देता है कि पार्टी दक्षिण में स्वीकार्य चेहरों को आगे रखकर लंबा खेल खेलना चाहती है।

Q2. क्या इससे सदन की कार्यवाही सुचारु होगी?
संभावना है। संयमी सभापति अक्सर विपक्ष-सरकार के बीच वर्किंग अंडरस्टैंडिंग बेहतर बनाते हैं, जिससे व्यवधान घटते हैं।

Q3. क्या यह आक्रामक बनाम संवादकी लाइन पर बदलाव है?
बिलकुल। यह चयन कंसेंसस-ड्रिवन अप्रोच की तरफ स्पष्ट शिफ्ट दिखाता है।

निष्कर्ष

BJP का यह फैसला महज़ चेहरा बदलना नहीं, बल्कि टोन-एंड-टेम्पो बदलना है—जहाँ वैचारिक सुसंगति, दक्षिणी विस्तार और संसदीय संतुलन—तीनों को जोड़कर एक दीर्घकालिक रणनीति की झलक मिलती है।


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