
इन दोनों ही शब्दों का उपयोग समय समय पर लोगो ने अपने अनुरूप अपने लाभ के लिए किया है बिना सच्चाई जाने बिना इसकी प्रासंगिकता को जाने लोग समाज में व्याप्त इस खूबसूरत वर्ण व्यवस्था को आग में झोंकने का काम करते है, मैं पूछना चाहता हूं उन लोगों से जो जातियों में भ्रम फैलाकर अपनी रोटियां सेकते है जब कोई शिशु जन्म लेता है तो उसे किस जाति का कहोगे, आप कहेंगे यह क्या बात हुई वह शिशु उसी जाति का कहलाएगा जिस जाति का उसका पिता होगा बहुत सहज है इसमें क्या मुश्किल है लेकिन यह पूरा सच नहीं है हां यह संभव है कि उस शिशु का जन्म किसी ब्राह्मण के यह हो जो ब्राह्मण से संबंधित कार्य करता हो या क्षत्रिय वैश्य या शूद्र भी हो सकता है, लेकिन इस बात से उस शिशु की जाति तय नहीं होती। ठीक उसी तरह से जिस तरह से शिशु की नजर में उसके माता पिता की जाति कोई मायने नहीं रखती।क्योंकि एक शिशु की नजर में उसके माता पिता में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र यह सभी जातियां निहित होंगी माता पिता ब्राह्मण बनकर जहां अपने शिशु को ज्ञान देते है वहीं क्षत्रिय बनकर बल और पौरुष का ज्ञान देते है भरण पोषण करके वैश्य धर्म का पालन करते है, और शूद्र बनके शिशु को स्वच्छता का ज्ञान देते है, तभी शिशु का सर्वांगीण विकास हो सकता है अगर इसमें किसी एक की भी कमी हो जाय तो शिशु का विकास असंभव है,उसी प्रकार समाज का विकास भी असंभव है , कोई बड़ा या छोटा नहीं है, सबका अपना महत्व है, बागेश्वर बाबा धीरेन्द्र शास्त्री जी कहते है जात पात की करो विदाई तो इसका मतलब यह कतई नही कि लोग अपना काम बंद कर दे जाति को काम तक हि सीमित रखना चाहिए उसे सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए वरना वह किसी काम का नहीं रहता यही बात बागेश्वर बाबा धीरेन्द्र शास्त्री जी ने कही , उसके बाद कुछ खुद को ज्यादा समझदार समझने वाले बुद्धिजीवियों ने श्रद्धेय शंकराचार्य जी से भी जात पात के विषय में पूछ डाला उन्होंने जो कहा और बागेशआर बाबा श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने जो कहा उसमें कोई अंतर नहीं है जाति का अस्तित्व है जैसे मुंह का अस्तित्व अपनी जगह है और पैर का अपनी जगह लेकिन क्या संपूर्ण शरीर का अस्तित्व शरीर के किसी भी अंग के बिना संभव है अगर संभव होता तो गैर जरूरी अंगों की आवश्यकता हि क्या थी ? इसी तरह जाति की अपनी प्रासंगिकता है जातियां परस्पर मिलकर अच्छे समाज का निर्माण करती है न कि आपस में लड़ झगड़ कर । और जातियां भी किसी की जागीर नहीं है शूद्र,ब्राह्मण बन सकता है ब्राह्मण , क्षत्रिय बन सकता है क्षत्रिय,वैश्य बन सकता है अपने अपने कार्य के अनुसार यह परिवर्तन होते ही रहते है लेकिन सामंजस्य जरूरी है समाज के सृजन के लिए I
अभी बिहार के चुनाव आ रहे है जाति के जहर ने फिर से पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। इसमें न समाज का कोई लाभ है न हि किसी जाति का , लाभ है तो सिर्फ चंद मुट्ठी भर राजनेताओं का ।
प्रकृति के सृजन के लिए कुछ बड़ा सोचिए पेड़ पौधे पहाड़ नदियां जीव जंतु पंछी सब हमारे लिए ही तो है, सनातन धर्म के अनुसार 84 लाख योनियों के बाद यह मनुष्य शरीर मिलता है यह प्रकृति की विलक्षण कृति है, इसे जातियों में बांटने के बजाय , जातियों के सहयोग से आने वाली पढ़ियो को जातिवाद के जहर से बचाएं।
धन्यवाद।
16 जुलाई
मृगांक ज्योति